हलकी धुप की सुबह के साथ, दिल में बस यही ख्याल उठता है कि क्या कुछ नया लिखूं जो सबके दिलो को छू जाये | क्या ऐसी बात कहूँ जो सबके दिलों पर असर कर जाये | कभी दिल शायरी के ख्याल से भर जाता है तो कभी किसी सांसारिक मुद्दे पर दिल खुद से बहस करने लगता है परन्तु हमेशा एक असमंजस का अँधेरा साया बना रहता है मेरे अक्स के आस-पास जो कभी चैन से जीने नहीं देता | फिर दिल में ख्याल उठता है अरे! यही तो मैं चाहता था...कि कुछ लिखूं, अपने दिल के अरमानो को नीले आकाश में उड़ान भरने दूं, उन अधूरे जज्बातों का पूरा करूँ जो कहीं दिल के किसी अँधेरे कोनो में दबे हुए कुचले से पड़े है, उन अधूरी हसरतों को पूरा करूँ जो हर रोज़ मुझमे जन्म लेती है परन्तु यह क्रूर समाज की अभिलाषाए उनका गला घोट देती है |
कल रात ज़ेहन में एक सवाल उठा, क्या लिखना जरूरी है? बातें बोल कर भी तो बताई जा सकती है या फिर किसी और माध्यम से फिर लिखना ही क्यूँ? बहुत देर अपने-आप से गुफ्तुगू करने के बाद मैंने ये जाना कि लिखने से आपके लफ्ज़ ता-उम्र कलम-बध हो जाते है, वो लफ्ज़ सारी ज़िन्दगी उसी रूहानियत से जिंदा रहते है जैसे वो उस रोज़ लिखे गए थे |
लिखना मेरे हिसाब से कोई बड़ी बात नहीं है, हर कोई कभी न कभी, किसी न किसी उम्र में, कुछ न कुछ तो लिखता ही है परन्तु कुछ अलग लिखने का अपना ही कुछ मज़ा होता है | लिखने के लिए बस अच्छी सोच, शब्दों का सही चयन और लिखने कि स्वेच्छा होनी चाहिए और शायद इसी से ही अच्छे लेखक का जन्म होता है | हम कुछ भी माँ के पेट से नहीं सीख कर नहीं आते, यह तो उस अच्छा-बुरा वातावरण का असर होता है जो हमारे आस-पास होता है | हम वही लिखते है जो हम देखते, सुनते या समझते है क्यूंकि वो हमारे ज़ेहन में रोम कर चुका होता है और न चाहते हुए भी हमारे लफ़्ज़ों में झलक जाती है | भाई! लिखने से तो मैंने एक ही चीज सीखी है और वो यह है कि मुझे मेरे लफ़्ज़ों कि ज़िन्दगी मिल जाती है, मुझे मेरे लफ़्ज़ों के लिए दायरा नहीं खोजना पड़ता, एक निर्मल बहाव के साथ शब्द बहते चले जाते है और लोग कहते है कि कुछ लिखा है |
मैं इस लिए नहीं लिखता कि मैं चर्चित होना चाहता हूँ या फिर इसलिए नहीं लिखता कि मेरे अन्दर का लेखक मुझे कचोटता रहता है यदपि वो लेखक हमेशा मुझे अन्दर से कचोटते रहता है कि उठ खड़ा हो, खोल दिल के उन बंद दरवाजों को जो सदियों पहले तूने बंद कर दिए थे | परन्तु मैं तो इसलिए लिखता हूँ क्यूंकि मुझे लिखना अच्छा लगता है | वैसे चर्चित होना किसे अच्छा नहीं लगता, किसे उपलब्धियां अच्छी नहीं लगती या फिर किसे अच्छा नहीं लगता कि उसकी लगन और मेहनत को सराहे | लिखने से मेरे जीवन में एक नया अध्याय जुड़ा है, अब मैं अच्छी सोच के साथ जीने लगा हूँ, हर चेहरे को किताबों कि तरह पढ़ने लगा हूँ, नयी सोच और शब्दों का दाएरा बढ़ने लगा है और सबसे अहम् लोगो के छुपे चेहरों के पन्ने पलटने लगा हूँ | वो कहते है न कि वक़्त के साथ-साथ तजुर्बा भी बढता जाता है और लोगो को पहचानने की छमता भी | लिखने से मेरी ज़िन्दगी को एक नया आयाम मिला है, एक नया एहसास मिला है जिसे जीना इतना हसीन है जितना जन्नत में बैठे खुदा से मिलना या फिर उस भगवान से मिलना जिसे हम बरसों से कैलाश, अमरनाथ या फिर उन ऊँची दुर्गम पहाड़ियों पर खोजते आ रहे है जिन पर चढ़ना सामान्यता कठिन है | चलिए! मैंने तो अपनी पसंद का रास्ता चुन लिया है अब आप की बारी है | कुछ वक़्त अपनी कलम को भी दीजिये ताकि कल उम्र-दराज़ होने पर आप यह सोच कर दुखी न हो कि आपने उस लेखक को अपने अंदर ही दम तोड़ने दिया अगर चाहते तो उससे दो घड़ी साँसे दे सकते थे | तो चलिए उस सुहाने शब्दों के सफ़र पर जिस पर कल्पनाओं की हसीन दुनिया बसी है, निकल पड़िए उस रूहानियत के सफ़र पर जिस पर लफ़्ज़ों की हुकूमत है | ले आईये उस दबे हुए लेखक को जो अन्दर ही अन्दर तड़प रहा है बहार निकलने के लिए, लीजिये कलम और लिख दीजिये कुछ नया सा....
शुक्रिया !!
शुक्रिया !!
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