अंतर्द्वंद...एक ऐसी परिस्थिति और कमोपेश है जिसमे हम उन कड़वे सच का सामना करते है जिसे हम जानते हुए भी आँख मूँद लेते है | अंतर्द्वंद की परिभाषा कुछ भी हो सकती है परन्तु यह सत्य है कि एक पसोपेश सा बना रहता है खुद के सवालों और जवाबों के बीच में, एक असमंजस बना रहता है अर्थ और निरर्थ के बीच, उन सवालों के बीच जिसका उत्तर जानते हुए भी हम सुनना या मानना नहीं चाहते है | अंतर्द्वंद की स्थिति बिलकुल उस समकालीन युद्ध की तरह होती है जिसमे दोनों तरफ से ज़ख्म खुद को ही मिलने होते है |
अंतर्द्वंद की परिस्थिति तब बनती है जब हमारे ज़ेहन में अनसुलझे सवालों का पुलिंदा बन जाता है, उन सच्चाईयों को दिल मानने पर मजबूर हो जाता है जिसे वो मानना नहीं चाहता | अंतर्द्वंद की कोई परिभाषा नहीं होती, अगर होती तो शायद उसे बताने के मुझे ज्यादा आसानी होती | उस विषय को कैसे समझाया जाए जो खुद में एक अनसुलझा सवाल है | एक गहन चिंतन की परिस्थिति बनी रहती है, दिल में बहुत सारे सवाल उठते है परन्तु उनके जवाब देने के लिए कोई पास नहीं होता | एक कशमकश सा बना रहता है, दिल के अन्दर न जाने कितनी आवाज़े बनती और बिगड़ती रहती है, दिल खुद से ही सवाल पूछता रहता है और जवाब जानते हुए भी दिल उसे मानना नहीं चाहता |
मैं इस अंतर्द्वंद की परिस्थिति में खुद के सवालों के जवाब ढूँढता हूँ, कई अनसुलझे पहलुओ को सुलझाने की कोशिश करता हूँ | इस स्थिति में वेग और आवेश काम नहीं करते क्यूंकि अंतर्द्वंद की स्थिति उन्ही लोगों की यादों के लेकर उत्पन्न होती है जिन्हें हम खोना नहीं चाहते, उन्ही यादों के लिए एक प्रश्नोत्तर की क्रमवावली बनाती है जो दूरियों में दूर हो गए है परन्तु दिल के आज भी नज़दीक है | मुझे ऐसी परिस्थिति में उन लम्हों से रूबरू होने का मौका मिलता है जिन्हें मैं भूलता जा रहा हूँ, उन यादों से हमसफ़र होने का ज़रिया मिलता है जिन्हें कहीं पीछे राहों में छोड़ चला हूँ, उन रिश्तों के मुलाकात का मौका मिलता है जो आज भी दिल के उतने ही अजीज़ है जितने वो कल थे |
तो चाहिए! समझिये अपने अन्दर चलते उस अंतर्द्वंद को जिसके बीच में आप उन रिश्ते, यादों, लम्हों को खोता देख रहे है जिन्हें आप खोना नहीं चाहते और बढ़िये उस हसीन सुख की ओर जिसे आप कहीं पीछे छोड़ चले है उन अधूरी यादों की तरह जो दिल-अजीज़ है |
सधन्यवाद!!!
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