Monday, November 21, 2011

रिश्तों की कच्ची डोर...

रिश्ता शब्द अपने आप में पूरी परिभाषा लिए हुए है परन्तु रिश्तों की अहेम पहचान उन कच्चे पलों में होती है जब इंसान को अपने सगे-साथियों की सबसे ज्यादा जरूरत होती है | अपितु, वही एक पल ऐसा भी होता है जिसमे आपको अच्छे और बुरे दोनों रिश्तों की पहचान हो जाती है | हालांकि, रिश्ते परिभाषा से नहीं, विश्वास से बनते है, कहने को रिश्तों की परिभाषा विश्वास के कच्चे धागे से शुरू हो एक अनचाहे प्रेमसंबंध पर ख़त्म होती है जिसको लफ़्ज़ों में बयान करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है |

मुझे याद है, रिश्तों की परख सीखते हुए मुझे एक अनजाने शख्स ने यह सीख दी कि रिश्ते रेत की तरह होते है उन्हें मुठ्ठी में जितना कसकर बाँधने की कोशिश करोगे वो उतनी ही तेज़ी से हाँथ से फिसलते चले जायेंगे और एक वक़्त ऐसा भी आएगा की आपके हाँथ में अपना कहने के लिए कुछ भी नहीं बचेगा | हालांकि बाद में उनके दिए कटु-अनुभवों से मैंने सीखा की रिश्तों की सही पहचान कैसे की जाए |


आप सोच रहे होंगे की आज मैं अचानक रिश्तों की बात लेकर कैसे बैठ गया, वो कहते है न चोट लगने पर ही दर्द का सही एहसास होता है | हम सभी की ज़िन्दगी में कभी न कभी रिश्तों की परीक्षा की घड़ी जरूर आती है और जब सदियों पुराने रिश्ते टूटते है तो मन आप-व्यथा बताने की स्तिथि में नहीं होता, किसी अपने को खो देने वाले दर्द का ज्वर दिल में चढ़ता-उतरता रहता है और इसी मनोस्तिथि में हम रिश्तों की उन मीठी बातों को भोल जाते है जो शायद मेरे हिसाब से सबसे अहेम होती है क्यूंकि दुःख के पल तो रो कर भुलाए जा सकते है परन्तु ख़ुशी के पलों में हँसी को भूल जाना बेवकूफी है |


पर अहेम सवाल यह है कि रिश्तों में दरार क्यूँ आती है ?
हम अपने अहम्, ईर्ष्या और द्वेष की भावनाओं में बहते हुए यह भूल जाते है कि इस रिश्ते के न होने से ज़िन्दगी में कैसा बदलाव आएगा | हम विष-वचन तो याद रख लेते है परन्तु उन मधु-वचनों को भूल जाते है जो कभी उस अनजाने रिश्ते की जान थे, पहचान थे | और शायद इसी मनोस्तिथि में पड़ कर हम उन रिश्तों का त्याग कर देते है जो कभी ज़िन्दगी हुआ करते थे, उन रिश्तों को भूल जाते है जिसमे कभी सारी दुनिया समां जाती थी, उन रिश्तों को महसूस करना छोड़ देते है जो कभी धडकनों की तरह सुनाई देते थे |

तो उठिए और फिर से उन रिश्तों की टूटती डोर को थाम लीजिये जो जाने अनजाने में धीरे-धीरे हाँथ से छूटती जा रही है, बताएये उन रिश्तों को अपने दिल की परिभाषा जो सच में दिल को अजीज़ है और महसूस कीजिये एक स्वछंद नयापन अपने रिश्तों में...

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