Wednesday, May 21, 2014

प्रतिभा की धनी है?

बड़ी अजीब सी व्यथा थी उस पिता की जिसकी लाड़ली अपंग थी, वो कुदरत की ही तो देन थी जिसको उसने इतने सालों से लाड़-प्यार से पाला था । तो क्या हुआ जो वो अपंग है, वो प्रतिभा की धनी है उसकी कलाकृति दुनिया भर में मशहूर है । तो क्या हुआ जो वो सिर्फ एक हाँथ की धनी है, उसके एक हाँथ से बनाए हुए चित्र सबको चकित कर देते है, उसके रंग बोलते है, अपनी कहानी कहते है, हँसाते है और रुलाते भी है । क्या प्रतिभा एक सुखी जीवन का पर्याय नहीं हो सकती या उसके लिए कोई बना ही नहीं ?

अपनी इसी व्यथा और रोज़-रोज़ के तानो के चलते उसने खुद को अपनी ही रंगों की दुनिया में समेट लिया था और करती भी क्या वो उन रिश्तेदारों का जो उसकी अपंगता को अभिशाप मानते थे । उस माँ का दिल रोज़ रोता था जब भी कोई उसकी लाड़ली को कुछ कहता । उस पिता का कलेजा रोज़ जलता जब भी कोई उसके दरवाजे से उसकी लड़की को न कर चला जाता । क्या कमी थी उसमे बस एक हाँथ ही तो नहीं थी । उसने तो खुद को कभी अपंग नहीं माना तो दुनिया को उसको अपंग मानने लगी ? पच्चीस की ही तो हुई थी वो, कोई उम्र तो नहीं निकली थी फिर क्यूँ सबको उसको दूर करने की पड़ी थी ? वो पहले भी किसी पर बोझ नहीं बनी तो क्यूँ अब लोग उसको किसी पर बोझ बना देना चाहते है ? क्या समाज के बंधनों में आज भी बंधना जरूरी है ? पर व्यथा उस पिता की थी जो उसकी लाड़ली को खुशियाँ और समाज जो जवाब दोनों को साथ ले कर चलना चाहता है ।

आएगा किसी रोज़ एक राजकुमार घोड़े पर चढ़ कर,
और ले जायेगा तुमको दूर गगन में,
खुशियाँ भी होंगी, रंगत भी होगी,
उस प्यार के चमन में,
कोई बाधा न होगी, कोई अपंगता न होगी,
उस नील गगन में,
आएगा किसी रोज़ एक राजकुमार घोड़े पर चढ़ कर,
और ले जाएगा तुमको दूर गगन में ।

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