Wednesday, May 21, 2014

ज़िन्दगी की सच्चाई...

माँ से कह तो दिया था उसने कि उसके जाने से कुछ फ़र्क नहीं पड़ेगा पर क्या सच में फ़र्क नहीं पड़ता? सवाल बड़ा ही चुभने वाला था पर वो सच्चाई को झुटला देना चाहता था । कैसे वो जी पायेगा उसके बिना ये तो कभी सोचा ही नहीं था उसने पर फिर भी उसने सबकी ख़ुशी के लिए खुद को इस बात से आश्वत कर लिया कि अगर वो मेरी क़िस्मत में नहीं होगी तो कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा । पर सवाल ये था कि क्या वो सच में खुश रह पायेगा, कई दिनों से ये सवाल दिल में कौंध रहा था क्या होगा उसका उसके बिना जिसके बिना वो जीना भी नहीं चाहता ? क्या होगा उसका जो वो किसी और का हो गया चाहते न चाहते ? जिसके दो पल गायब होते ही उसकी धडकनें रुक जाती है कैसे जी पायेगा उसके बिना पर शायद यही ज़िन्दगी की सच्चाई है कि

बिछड़ता वो ही है जो मेरा अपना है,
वरना, ग़ैरों का फुरसत मुझसे दिल्लगी की ।

पर, वो दुनिया से कहना नहीं चाहता कि "हाँ! आदत है वो मेरी" और नहीं जीना चाहता उसके बिना...पर वो जानती है कि क्या है वो उसके बिना, वो जानती है कि पूरा हो कर भी अधूरा है वो उसके बिना ।

बहुत सी वफ़ाए लिए चल रहा है अभिनव,
फ़कत तुझ संग ज़िन्दगी की ख़ातिर ।

प्रतिभा की धनी है?

बड़ी अजीब सी व्यथा थी उस पिता की जिसकी लाड़ली अपंग थी, वो कुदरत की ही तो देन थी जिसको उसने इतने सालों से लाड़-प्यार से पाला था । तो क्या हुआ जो वो अपंग है, वो प्रतिभा की धनी है उसकी कलाकृति दुनिया भर में मशहूर है । तो क्या हुआ जो वो सिर्फ एक हाँथ की धनी है, उसके एक हाँथ से बनाए हुए चित्र सबको चकित कर देते है, उसके रंग बोलते है, अपनी कहानी कहते है, हँसाते है और रुलाते भी है । क्या प्रतिभा एक सुखी जीवन का पर्याय नहीं हो सकती या उसके लिए कोई बना ही नहीं ?

अपनी इसी व्यथा और रोज़-रोज़ के तानो के चलते उसने खुद को अपनी ही रंगों की दुनिया में समेट लिया था और करती भी क्या वो उन रिश्तेदारों का जो उसकी अपंगता को अभिशाप मानते थे । उस माँ का दिल रोज़ रोता था जब भी कोई उसकी लाड़ली को कुछ कहता । उस पिता का कलेजा रोज़ जलता जब भी कोई उसके दरवाजे से उसकी लड़की को न कर चला जाता । क्या कमी थी उसमे बस एक हाँथ ही तो नहीं थी । उसने तो खुद को कभी अपंग नहीं माना तो दुनिया को उसको अपंग मानने लगी ? पच्चीस की ही तो हुई थी वो, कोई उम्र तो नहीं निकली थी फिर क्यूँ सबको उसको दूर करने की पड़ी थी ? वो पहले भी किसी पर बोझ नहीं बनी तो क्यूँ अब लोग उसको किसी पर बोझ बना देना चाहते है ? क्या समाज के बंधनों में आज भी बंधना जरूरी है ? पर व्यथा उस पिता की थी जो उसकी लाड़ली को खुशियाँ और समाज जो जवाब दोनों को साथ ले कर चलना चाहता है ।

आएगा किसी रोज़ एक राजकुमार घोड़े पर चढ़ कर,
और ले जायेगा तुमको दूर गगन में,
खुशियाँ भी होंगी, रंगत भी होगी,
उस प्यार के चमन में,
कोई बाधा न होगी, कोई अपंगता न होगी,
उस नील गगन में,
आएगा किसी रोज़ एक राजकुमार घोड़े पर चढ़ कर,
और ले जाएगा तुमको दूर गगन में ।

Thursday, May 1, 2014

इंतज़ार...

बड़ा अकेला सा महसूस कर रहा था वो, शायद रात कुछ ज्यादा गहरी थी । करवटें और बेचैनियाँ लिए वो पलटता रहा पहर-दर-पर उस सुबह के इंतज़ार में या यूँ कहूँ उस आवाज़ के इंतज़ार में जिसे वो उस पल सुनना चाहता था । यही तो था उसका दिन या कहूँ रात...पर उसकी आवाज़ नहीं आई । शायद…

मायूस सी बैठी थी रात,
जैसे खुद बुझ कर आई हो ।

अजीब सा मौसम बना हुआ था अन्दर, शायद लफ़्ज़ों का घमासान हो रहा था, बेचैनी बढ़ती चली जा रही थी करवटें बदलती सुइयों की तरह और वो उस उद्देढ्बुन में खोया जा रहा था कि क्या हसरतें पालना गलत है? 

कौन चलता है यहाँ उम्र बसर होने तक,
हर कोई है मुसाफ़िर तन्हा राह का ।

ख़ैर! अश्क़ों का काफ़िला भी अजीब होता है, कहते है जहाँ दबाने की आरज़ू होती है वहीँ फूट पड़ता है ।

रातें गुज़री है ये भी गुज़र जायेगी,
यादों का कुछ रश्क़ लिए ।