Thursday, October 24, 2013

चेहरा बोलता है...

एक सवाल अपनी मुठ्ठी में लिए घूम रहा था वो, चेहरे पर जवाबों की झुर्रिया नज़र पड़ने लगी थी । मेरे सामने से गुज़रा तो नज़र पड़ी, मुठ्ठी बंधे छुपाये-छुपाये चला जा रहा था । मैंने पूछना चाहा तो देखने लगा मेरी ओर टकटकी लगाये । मेरे चेहरे की जिज्ञासा पढ़ वो मेरे पास आया और धीरे से सवाल पुछा कि क्या मैं अच्छा नहीं दिखता?
गहरा सन्नाटा था । जवाब बहुत थे मेरे पास कहने को, पर उसको शायद झूठी तस्सल्ली ही लगती । बहुत खूबसूरत नहीं दिखता था वो, दुबला-पतला सरल सा दिखता था बिना किसी लाग-लपेट के अपनी ही धुन में रहने वाला सा था वो पर कहीं न कहीं दिल का हीरा था, हँसमुख और मिलनसार मानो अभी अपनी बातों से दिल जीत लेगा । पर, आज हताश नज़र आ रहा था, मैंने पूछना चाहा पर कुछ बोला नहीं, बस जाते-जाते हलके से कह गया...

दर्द उसने दिया जो मेरा अपना था,
वर्ना गैरों का कहाँ फुरसत मुझे चोट पहुंचाने की ।

और, मैं हैरान था उसकी चोट करती बातों से, क्या चेहरा सच में इतना मायने रखता है? या साफ़ दिल का इस शहर में कोई मोल नहीं? और मैं अपनी उधेड़बुन में उसको दूर जाते हुए देखता रहा ।

दिखता है चेहरा ही बाज़ार में,
यहाँ इश्क़ में दिल नहीं दिखा करते ।

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