मैं बहुत उधेड़बुन में था कि कैसे बयान करूँ उस लड़की की हकीक़त जिसने अभी दुनिया देखनी शुरू की हो, मेहनत शुरू की हो, अपने लिए सोचना और समझना शुरू किया हो । बड़ी बेचैन थी मेरी सांसें जो अन्दर से कचोट रही थी कि कुछ कहो, ऐसे कब तक चुप बैठोगे । सवाल कठिन जरूर था पर जवाब तो देना ही था...
छोटी-छोटी इच्छाओं का घरौंदा बांधे उसने चलना शुरू किया, कुछ पंख लिए और अपने घोसले से बाहर की तरफ झाँका, कोई था नहीं सँभालने को पर फिर भी दूर उड़ते हुए साथियों को देख हौसले बुलंद किये और कूद उठी ज़िन्दगी के मैदान में । उड़ते हुए उसने पंख हासिल किये और ज़िन्दगी के असली सफ़र की तरफ उड़ना शुरू किया पर ये क्या? शिकारी ने पंख काटने के इरादे से उससे घोसले में बुलाया, शिकारी अपना था, मालूम था नुक्सान नहीं करेगा इसलिए चलने की ठानी!
उलझन बहुत थी मन में, क्या करे, कैसे बचे ज़िन्दगी के भवर से, कैसे समझाए कि नहीं तैयार वो पिंजरों में रहने के लिए, कैसे समझाए की अभी और आस्मां जीतने है, उड़ना है, दुनिया देखनी है, कैसे बतलाये की जो तुमने सोचा है मैं उसके लिए तैयार नहीं । पर वो न नहीं कह सकती थी, कैसे कहती कोई हस्ती नहीं थी और किस से कहती वो जो अपना है? मन-मंथन में उड़ते-उड़ते टकरा बैठी साथ के एक परिंदे से, परिंदा था छोटा परन्तु तेज़ था, देखते है दुविधा भाप गया और वो चिड़िया भी अपने मन का बोझ नहीं सह सकी, रो पड़ी और कह दी आप बीती । परिंदे ने समझाया, बुझाया, हंसाया थोड़ा रुलाया भी और अपने लिए लड़ना सिखाया, कि एक दिन तुम्हे खुद अपने लिए खड़ा होना पड़ेगा और ये सोचो की वो वक़्त आज है, इसलिए अपने लिए खड़े हो, लड़ो और हथियार मत डालो ।
और चिड़िया बोली "क्या मैं उड़ नहीं सकती जैसे मैं उड़ना चाहती हूँ?"
क्या बस यह एक सवाल था?
छोटी-छोटी इच्छाओं का घरौंदा बांधे उसने चलना शुरू किया, कुछ पंख लिए और अपने घोसले से बाहर की तरफ झाँका, कोई था नहीं सँभालने को पर फिर भी दूर उड़ते हुए साथियों को देख हौसले बुलंद किये और कूद उठी ज़िन्दगी के मैदान में । उड़ते हुए उसने पंख हासिल किये और ज़िन्दगी के असली सफ़र की तरफ उड़ना शुरू किया पर ये क्या? शिकारी ने पंख काटने के इरादे से उससे घोसले में बुलाया, शिकारी अपना था, मालूम था नुक्सान नहीं करेगा इसलिए चलने की ठानी!
उलझन बहुत थी मन में, क्या करे, कैसे बचे ज़िन्दगी के भवर से, कैसे समझाए कि नहीं तैयार वो पिंजरों में रहने के लिए, कैसे समझाए की अभी और आस्मां जीतने है, उड़ना है, दुनिया देखनी है, कैसे बतलाये की जो तुमने सोचा है मैं उसके लिए तैयार नहीं । पर वो न नहीं कह सकती थी, कैसे कहती कोई हस्ती नहीं थी और किस से कहती वो जो अपना है? मन-मंथन में उड़ते-उड़ते टकरा बैठी साथ के एक परिंदे से, परिंदा था छोटा परन्तु तेज़ था, देखते है दुविधा भाप गया और वो चिड़िया भी अपने मन का बोझ नहीं सह सकी, रो पड़ी और कह दी आप बीती । परिंदे ने समझाया, बुझाया, हंसाया थोड़ा रुलाया भी और अपने लिए लड़ना सिखाया, कि एक दिन तुम्हे खुद अपने लिए खड़ा होना पड़ेगा और ये सोचो की वो वक़्त आज है, इसलिए अपने लिए खड़े हो, लड़ो और हथियार मत डालो ।
और चिड़िया बोली "क्या मैं उड़ नहीं सकती जैसे मैं उड़ना चाहती हूँ?"
क्या बस यह एक सवाल था?
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