झूठ या फिर एक सफ़ेद सच दिल बहलाने के लिए की इंसान सच सुनने के काबिल नहीं । वो सुनना वही चाहता है जो उसके दिल को सुकून दे, उसकी अंतर-आत्मा को शिथिल न करे परन्तु फिर भी कहीं न कहीं एक जिज्ञासा होती है वो अनचाहा सच जानने की जो हमारे दिल को पीड़ा और ग्लानि से भर दे और अंतर-मन को टटोले और पूछे कि क्या इसी सच की तलाश थी हमें?
ऐसी व्यथा-स्तिथि में मुझे पिताजी की एक पंगती खूब सटीक लगती है "कितना मुश्किल है किसी यंत्रणा में जीना और जीते चले जाना खुद के स्वाह होने तक"। अपितु हम जानते है कि ऐसी स्तिथि में मनोभाव कैसे होते है परन्तु फिर भी हम मीठे झूठ को पचा उस कड़वे सच से दूर भागते रहते है जो गाहे-बगाहे हमारी आँखों के सामने घूमता रहता है ।
झूठ का कोई अंत नहीं, सच का कोई मंत्र नहीं,
जान लो जो बात को, जिज्ञासा का कोई अंत नहीं,
आँख मूंदे, बाहें मोड़े, बैठे कब तक रहोगे,
आँख खोलो, सच को देखो, ऐसे कब तक रहोगे,
झूठ बोले हो पतन जो, राख आज कर दो मुझे,
ग्लानि भर जब आँख फेरों , भस्म तुम कर दो मुझे,
डोर जो हो कच्चे-धागे, बाँध लो हर कर मुझे,
मन बड़ा विचलित है मेरा, ध्यान भंग कर दो मुझे,
जान को जो बात को, जिज्ञासा का कोई अंत नहीं,
झूठ का कोई अंत नहीं, सच का कोई मंत्र नहीं ।
मैंने अपने छोटे-छोटे अनुभवों से सिखा है कि कितना मुश्किल है सच कहना झूठ के सामने, हम झूठ बड़ी आसानी से बोल लेते है परन्तु यह भी याद रखिये सच बोलने पर आपको यह याद रखने की जरूरत नहीं कि आपने सामने वाले को क्या बोला था । सच कड़वा जरूर है परन्तु सच, सच है । बहुत छोटा सा फासला है सच और झूठ के दरमियान पर झूठ बोलने से पहले एक बार सोचिये क्या आप झूठ बोल कर अपने प्रियजन के कोमल मन को ठेस तो नहीं पहुंचा रहे?
हम सभी ने छोटे-छोटे झूठ बोल कर बहुत कुछ खोया है परन्तु मैं आशा करता हूँ कि अब हम गलतियाँ दोहरा कर खुद को ग्लानि का पात्र नहीं बनायेंगे क्यूंकि "झूठ का कोई अंत नहीं, सच का कोई मंत्र नहीं " ।
ऐसी व्यथा-स्तिथि में मुझे पिताजी की एक पंगती खूब सटीक लगती है "कितना मुश्किल है किसी यंत्रणा में जीना और जीते चले जाना खुद के स्वाह होने तक"। अपितु हम जानते है कि ऐसी स्तिथि में मनोभाव कैसे होते है परन्तु फिर भी हम मीठे झूठ को पचा उस कड़वे सच से दूर भागते रहते है जो गाहे-बगाहे हमारी आँखों के सामने घूमता रहता है ।
झूठ का कोई अंत नहीं, सच का कोई मंत्र नहीं,
जान लो जो बात को, जिज्ञासा का कोई अंत नहीं,
आँख मूंदे, बाहें मोड़े, बैठे कब तक रहोगे,
आँख खोलो, सच को देखो, ऐसे कब तक रहोगे,
झूठ बोले हो पतन जो, राख आज कर दो मुझे,
ग्लानि भर जब आँख फेरों , भस्म तुम कर दो मुझे,
डोर जो हो कच्चे-धागे, बाँध लो हर कर मुझे,
मन बड़ा विचलित है मेरा, ध्यान भंग कर दो मुझे,
जान को जो बात को, जिज्ञासा का कोई अंत नहीं,
झूठ का कोई अंत नहीं, सच का कोई मंत्र नहीं ।
मैंने अपने छोटे-छोटे अनुभवों से सिखा है कि कितना मुश्किल है सच कहना झूठ के सामने, हम झूठ बड़ी आसानी से बोल लेते है परन्तु यह भी याद रखिये सच बोलने पर आपको यह याद रखने की जरूरत नहीं कि आपने सामने वाले को क्या बोला था । सच कड़वा जरूर है परन्तु सच, सच है । बहुत छोटा सा फासला है सच और झूठ के दरमियान पर झूठ बोलने से पहले एक बार सोचिये क्या आप झूठ बोल कर अपने प्रियजन के कोमल मन को ठेस तो नहीं पहुंचा रहे?
हम सभी ने छोटे-छोटे झूठ बोल कर बहुत कुछ खोया है परन्तु मैं आशा करता हूँ कि अब हम गलतियाँ दोहरा कर खुद को ग्लानि का पात्र नहीं बनायेंगे क्यूंकि "झूठ का कोई अंत नहीं, सच का कोई मंत्र नहीं " ।